राजस्थान की लोक देवियाँ | राजस्थान सामान्य ज्ञान नोट्स RS Creator 19 May 2021 Study Notes PDF 1 Comment राजस्थान की लोक देवियाँ | राजस्थान की कला व संस्कृति नोट्स राजस्थान की लोक देवियाँ | राजस्थान की कला व संस्कृति नोट्स Govt Jobs WhatsApp Group Join Now Telegram Group Join Now Table of content (toc) करणी माता बीकानेर के राठौड़ शासकों की कुलदेवी। चूहों वाली देवी के नाम से विख्यात इष्ट देवी तेमड़ाराय । राव बीका ने इन्हीं के आशीर्वाद से जंगल क्षेत्र में राठौड़ वंश का शासन स्थापित किया था। जन्म सुवाप गांव के चारण परिवार में, मंदिर देशनोक बीकानेर। जीण माता चौहान वंश की आराध्य देवी। यह धंध राय की पुत्री एवं हर्ष की बहन थी। मंदिर में इनकी अष्टभुजी प्रतिमा है। यहां चेत्र अव आश्विन माह की शुक्ला नवमी को मेला भरता है। मंदिर का निर्माण रेवासा( सीकर) में पृथ्वीराज चौहान प्रथम के समय राजा हटड द्वारा करवाया गया। केला देवी करौली के यदुवंश( यादव वंश) की कुलदेवी। इनकी आराधना में लांगुरिया गीत गाए जाते हैं। त्रिकूट पर्वत की घाटी( करौली) में है। यहां नवरात्रा में विशाल लक्की मेला भरता है। शीला देवी( अन्नपूर्णा देवी) जयपुर के कछवाहा वंश की आराध्य देवी। इनका मंदिर आमेर दुर्ग में है। शिला माता की यह मूर्ति पाल शैली में काले संगमरमर से निर्मित है। महाराजा मानसिंह पश्चिम बंगाल के राजा से ही 1604 में मूर्ति लाए थे। जमुवाय माता ढूंढ के राज वंश की कुलदेवी। का मंदिर जमुवा रामगढ़ जयपुर में है। आईजी माता सीरवी जाति के क्षत्रियों की कुलदेवी। का मंदिर बिलाड़ा( जोधपुर)में है। मंदिर “दरगाह” व थान “बडेर” कहा जाता है। ये रामदेव जी की शिक्षा थी। इन्हें मानी देवी( नवदुर्गा) का अवतार माना जाता है। राणी सती वास्तविक नाम नारायणी देवी। दादी जी के नाम से लोकप्रिय। यह पति की मृत्यु पर सती हुई थी। झुंझुनू में रानी सती के मंदिर में भाद्रपद अमावस्या को मेला भरता है। आवड़ माता जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी। हिना का मंदिर देवरी पर्वत( जैसलमेर) पर है । सुगन चिडी आवड़ माता का स्वरूप माना जाता है। इन्हें तेमड़ा ताई भी कहते हैं। शीतला माता निवारक देवी। बच्चों की संरक्षिका देवी। खेजड़ी को शीतला माता मानकर पूजा की जाती है। चाकसू( जयपुर) मंदिर जिसका निर्माण पुर के महाराजा माधोसिंह जी ने करवाया था। चेत्र कृष्णाष्टमी को वार्षिक पूजा व मंदिर में विशाल मेला भरता है। इस दिन लोग बास्योड़ा बनाते हैं। इनकी पूजा खंडित प्रतिमा के रूप में की जाती है पता पुजारी कुम्हार होते हैं। इनकी सवारी गधा है। बांध स्त्रियां संतान प्राप्ति हेतु इनकी पूजा करती है। सुगाली माता आऊवा के ठाकुर परिवार की कुलदेवी। इस देवी प्रतिमा के 10 सिर और 54 हाथ हैं। नकटी माता जयपुर के निकट जय भवानीपुरा में नकटी माता का प्रतिहार कालीन मंदिर है। ब्राह्मणी माता बारां जिले के अंता कस्बे से 20 किमी दूर सोरसेंन ग्राम के पास ब्राह्मणी माता का विशाल प्राचीन मंदिर है। यहां देवी की पीठ की ही पूजा होती है, अग्र भाग कि नहीं। यहां माघ शुक्ला सप्तमी को गधों का मेला भी लगता है। जिलानी माता अलवर जिले के रोड कस्बे की लोक देवी। यहां इन का प्रसिद्ध मंदिर है। अंबिका माता जगत( उदयपुर) में हिना का मंदिर है, जो मात्र देवियों को समर्पित होने के कारण शक्ति पीठ कहलाता है। जगत का मंदिर “मेवाड़ का खजुराहो” कहलाता है। पथवारी माता तीर्थ यात्रा की सफलता की कामना हेतु राजस्थान में पथवारी देवी की लोक देवी के रूप में पूजा की जाती है। नागणेची माता जोधपुर के राठौड़ों की कुलदेवी। नीम के वृक्ष के नीचे इनका थान होता है। नागणेची जोधपुर के राठौड़ों की कुलदेवी। नीम के वृक्ष के नीचे थान होता है। घेवर माता राजसमन्द की पाल पर इनका मंदिर है। सिकराय माता उदयपुरवाटी( झुंझुनू) में मलयकेतु पर्वत पर। खंडेलवालो की कुलदेवी। ज्वाला माता जोबनेर। खंगारोतो की कुलदेवी। सचिया माता ओसियां(जोधपुर)। ओसवालों की कुलदेवी। आशापुरी या महोदरी माता मोदरा ( जालौर) के सोनगरा चौहानों की कुलदेवी तनोटिया देवी तनोटक (जैसलमेर)। राज्य में सेना के जवान पूजा करते हैं। थार की वैष्णो देवी। शाकंभरी देवी शाकंभरी( सांभर) यह चौहानों की कुलदेवी है। त्रिपुर सुंदरी तलवाड़ा( बांसवाड़ा)
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