राजस्थान की सभ्यता | राजस्थान सामान्य ज्ञान नोट्स
- पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार राजस्थान का इतिहास पूर्व पाषाण काल से प्रारंभ होता है। आज से करीब एक लाख वर्ष पहले मनुष्य मुख्यतः बनास नदी के किनारे या अरावली के उस पार की नदियों के किनारे निवास करता था।
- आदिम मनुष्य अपने पत्थर के औजारों की मदद से भोजन की तलाश में हमेशा एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते रहते थे, इन औजारों के कुछ नमूने बैराठ, रैध और भानगढ़ के आसपास पाए गए हैं।
- प्राचीनकाल में उत्तर-पश्चिमी राजस्थान में वैसा मरुस्थल नहीं था जैसा वह आज है। इस क्षेत्र से होकर सरस्वती और दृशद्वती जैसी विशाल नदियां बहा करती थीं। इन नदी घाटियों में हड़प्पा, ‘ग्रे-वैयर’ और रंगमहल जैसी संस्कृतियां फली-फूलीं।
- यहां की गई खुदाइयों से खासकर कालीबंग के पास, पांच हजार साल पुरानी एक विकसित नगर सभ्यता का पता चला है। हड़प्पा, ‘ग्रे-वेयर’ और रंगमहल संस्कृतियां सैकडों दक्षिण तक राजस्थान के एक बहुत बड़े इलाके में फैली हुई थीं।
कालीबंगा सभ्यता( हनुमानगढ़)
- सरस्वती (वर्तमान की घग्घर) नदी के निकट 3000 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व तक। राजस्थान की सबसे पुरानी ताम्र युगीन काल की सभ्यता है।
- 1952 में अमलानन्द घोस द्वारा खोज की गई।
- इसके उत्खननकर्ता (1961-69) बी. बी. लाल (बृजबासी लाल), बी. के. थापर(बालकृष्ण थापर) थे।
- कालीबंगा शाब्दीक अर्थ – काली चुडि़यां
कालीबंगा सभ्यता की विशेषताएं:
- जुते हुऐ खेत के साक्ष्य
- यह नगर दो भागों में विभाजित है और दोनों भाग सुरक्षा दिवार(परकोटा) से घिरे हुए हैं।
- लकड़ी से बनी नाली के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
- यहां से ईटों से निर्मित चबुतरे पर सात अग्नि कुण्ड प्राप्त हुए है
- जिसमें राख एवम् पशुओं की हड्डियां प्राप्त हुई है। यहां से ऊंट की हड्डियां प्राप्त हुई है, ऊंट इनका पालतु पशु है।
- यहां से सुती वस्त्र में लिपटा हुआ ‘उस्तरा‘ प्राप्त हुआ है।
- यहां से कपास की खेती के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
- जले हुए चावल के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- युगल समाधी के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- यहां से मिट्टी से निर्मिट स्केल(फुटा) प्राप्त हुआ है।
- यहां से शल्य चिकित्सा के साक्ष्य प्राप्त हुआ है। एक बच्चे का कंकाल मिला है।
आहड़ सभ्यता( उदयपुर)
- आयड़(बेड़च नदी के तट पर)1900 ईसा पुर्व से 1200 ईसा पुर्व 1953 में अक्षय कीर्ति व्यास द्वारा खोज की गई।
- यह ताम्र पाषाण काल की सभ्यता है।
- 1956 में आर. सी. अग्रवाल(रत्नचन्द्र अग्रवाल) तथा एच.डी.(हंसमुख धीरजलाल) सांकलिया द्वारा उत्खनन करवाया गया।
- आहड़ का प्राचीन नाम ताम्रवती नगरी है।
- 10 या 11 शताब्दी में इसे आघाटपुर/आघाट दुर्ग कहते थे।
- इसका स्थानीय नाम धुलकोट था।
आहड़ सभ्यता की विशेषताएं:
- ताम्बे की मुहरें तथा मुद्राएं , एक मुद्रा पर एक ओर त्रिशूल एवं दूसरी और अपोलो अंकित है जिसके हाथ में तीर है तथा पीछे तरकश है।
- ताम्बा गलाने की भट्टी मिली है।
- यहाँ के निवासी शवों को आभूषणों सहित दफनाते थे।
- यह सभ्यता बनास नदी सभ्यता का हिस्सा थी इसलिए इसे बनास संस्कृति भी कहते हैं।
गिलूंड
- बनास नदी के पास गिलूंड में ताम्रयुगीन सभ्यता एवं बाद के अवशेष मिले है।
बागौर (भीलवाड़ा)
- कोठारी नदी के पास इस कस्बे के टीले उत्खनन1967-69 में डॉ.वी. एन.मिश्र व लेशीन द्वारा करवाया गया।
- मध्य पाषाण कालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त।
बालाथल( उदयपुर)
- 1993 में उत्खनन करवाया गया। ताम्र पाषाण युगीन सभ्यता(3000 ई. पू. से 2500 ई. पू.) तक।
गणेश्वर( नीमकाथाना- सीकर)
- कांतली नदी के किनारे एक टीले पर उत्खनन कार्य।
- उत्खनन पूर्व हड़प्पा कालीन में ताम्र युगीन उपकरण कुल्हाड़ी आदि बड़ी मात्रा में मिले है।
- ताम्र युगीन संस्कृतियों में सबसे प्राचीन सभ्यता है।
रंग महल( हनुमानगढ़)
- रंग महल घग्घर नदी के पास स्थित है।
- डॉ. हनारिड के निर्देशन में 1952-54 ई.में खुदाई।
नोह ( भरतपुर)
- चित्रित सलेटी रंग गेरू रंग के पात्रों के अवशेष प्राप्त।
बैराठ ( जयपुर)
- प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर में बीजक की पहाड़ी, भीम जी की डूंगरी में देव जी की डूंगरी आदि खानों में प्रथम बार उत्खनन कार्य दयाराम साहनी द्वारा1936-37 ई.में।
- उत्खनन में मौर्यकालीन व उससे पूर्व की सभ्यताओं के अवशेष प्राप्त हुए। बीजक की पहाड़ी से अशोक कालीन गोल बौद्ध मंदिर व बौद्ध मठ के अवशेष मिले हैं।
- यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि व पशुपालन था। खाद्यान्न में गेहूं व चावल का प्रयोग।
- सूती कपड़े में बंदी ही मुद्राएं व पंच मार्क के मिले हैं।
नगरी /मध्यमिका ( चित्तौड़गढ़)
- सर्वप्रथम उत्खनन 1904 में डॉक्टर भंडारकर द्वारा किया गया।
- यहां शिवी जनपद के सिक्के एवं गुप्तकालीन कला के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
जोधपुरा( जयपुर)
- शंगु व कुषाण कालीन सभ्यता विशेष तथा लोह उपकरण बनाने की भटिया प्राप्त।
रेड ( टोंक)
- पूर्व गुप्त कालीन लोहे सामग्री का विशाल भंडार प्राप्त। प्राचीन भारत का टाटा नगर के नाम से प्रसिद्ध है।
सुनारी( खेतड़ी- झुंझुनू)
- लोहे के अयस्क से लोहा बनाने की प्राचीनतम भट्टी प्राप्त। किस शस्त्र व बर्तन भी प्राप्त।
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