राजस्थान के दुर्ग | राजस्थान सामान्य ज्ञान नोट्स
- शुक्र नीति में राजस्थान के दुर्गों का 9 तरह से वर्गीकरण किया गया जो निम्नलिखित प्रकार से है।
एरन दुर्ग
- यह दुर्ग खाई, काँटों तथा कठोर पत्थरों से निर्मित होता हैं । उदाहरण – रणथम्भीर दुर्ग, चित्तौड़ दुर्ग ।
धान्वन (मरूस्थल) दुर्ग
- ये दुर्ग चारों ओर रेत के ऊँचे टीलों से घिरे होते है । उदाहरण – जैसलमेर, बीकानेर व नागौर के दुर्ग
औदक दुर्ग (जल दुर्ग)
- ये दुर्ग चारों ओर पानी से घिरे होते है । उदाहरण – गागरोण (झालावाड), भैंसरोड़गढ़ दुर्ग (चित्तोंड़गढ़) ।
गिरि दुर्ग
- ये पर्वत एकांत में किसी पहाडी पर स्थित होता है तथा इसमे जल संचय का अच्छा प्रबंध होता है । उदाहरण – कुम्भलगढ़, मांडलगढ़ (भीलवाडा), तारागढ़ (अजमेर), जयगढ़, नाहरगढ़ (जयपुर) , अचलगढ (सिरोही), मेहरानगढ (जोधपुर) ।
सैन्य दूर्ग
- जो व्यूह रचना में चतुर वीरों से व्याप्त होने से अभेद्य हो ये दुर्ग सर्वश्रेष्ठ समझे जाते है ।
सहाय दुर्ग
- जिसमें वीर और सदा साथ देने वाले बंधुजन रहते हो ।
वन दुर्ग
- जो चारों और वनों से ढका हुआ हो और कांटेदार वृक्ष हो । जैसे सिवाना दुर्ग, त्रिभुवनगढ़ दुर्ग रणथम्भौर दुर्ग ।
पारिख दुर्ग
- वे दुर्ग जिनके चारों और बहुत बडी खाई हो । जैसे लोहागढ़ दुर्ग, भरतपुर ।
पारिध दुर्ग
- जिसके चारों ओर ईट, पत्थर तथा मिट्टी से बनी बडी-बडी दीवारों का सुदृढ परकोटा हो जैसे – चित्तोड़गढ़,
कुम्भलगढ़ दुर्ग
- महाराणा कुंम्भा ने लगभग 32 दुर्गो का निर्माण करवाया ।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग
- यह राजस्थान का दक्षिणी पूर्वी प्रवेश द्वार, मालवा का प्रवेश द्वार, राजस्थान का गौरव, दुर्गों का सिरमौर एवं चित्रकूट दुर्ग आदि नाम से जाना जाता है।
- यह दुर्ग बेडच और गंभीरी नदियों के संगम स्थल के समीप मिल सके पठार पर स्थित है।
- इस दुर्ग का निर्माण चित्रांगद मौर्य ने करवाया
- इस पर अधिकांश निर्माण कुंभा ने करवाया अतः कुंभा “चित्तौड़गढ़ दुर्ग का आधुनिक निर्माता” के लाता है।
कुंभलगढ़ दुर्ग
- यह गिरी दुर्ग है, जिसका निर्माण महाराणा कुंभा ने 1443 से 1458 के मध्य राजसमंद जिले में जरगा पहाड़ी पर करवाया।
- इस दुर्ग के वास्तुकार मंडन थे।
- इस दुर्ग के भीतर एक लघु दुर्ग कटार गढ़ ग्रुप बना हुआ है, जिसमें महाराणा कुंभा रहकर साम्राज्य की देखरेख करता था, अतः इस दुर्ग को मेवाड़ की आंख कहते हैं।
- इस दुर्ग के बारे में अबुल फजल ने लिखा है यह दुर्ग कितनी ऊंचाई पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर पर रखी पगड़ी गिर जाती है।
रणथंभौर दुर्ग
- यह दुर्ग सवाईमाधोपुर में स्थित है
- रणथंबोर दुर्ग दुर्गाधीराज व चित्तौड़गढ़ के किले का छोटा भाई के नाम से जाना जाता है।
- इस दुर्ग का निर्माण सपालदक्ष के चौहान शासक रणथमनदेव ने 944 में करवाया।
- इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार रणथंबोर का किला अंडाकृती ऊंचे पहाड़ पर स्थित है।
- अबुल फजल ने इसीलिए के बारे में लिखा है कि अन्य शब्द दुर्ग नग्न है, जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है।
- इस दुर्ग पर विश्व प्रसिद्ध शाका 11 जुलाई, 1301 में हुआ।
सिवाना का दुर्ग( बाड़मेर)
- इस दुर्ग का निर्माण वीर नारायण पवार( राजा भोज का पुत्र) ने 10 वीं शताब्दी में करवाया।
- इस का प्राचीन नाम कुंभ्यना व जालौर दुर्ग की कुंजी है।
- इस दुर्ग में दो प्रसिद्ध साके 1310 व 1582 मैं हुए।
गागरोन का किला( झालावाड़)
- यह किला राजस्थान का एकमात्र ऐसा किला है जो बिना किसी नियम के एक चट्टान पर सीधा खड़ा है।
- इस दुर्ग का निर्माण 7-8वीं शताब्दी में कालीसिंध नदी व आहू नदी के संगम पर डोडा राजपूत( परमार) ने करवाया।
- यह दुर्ग जलदुर्ग या ओदक दुर्ग का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
- गागरोन दुर्ग में 1423 व 1444 मे दो प्रमुख शाके हुए।
सोनारगढ़ का किला (जैसलमेर)
- सोनारगढ़ का किला राजस्थान का दूसरा सबसे प्राचीन किला है।
- इसका निर्माण रावजैसल द्वारा 1155 में त्रिकूट नामक पहाड़ी पर बिना चुनना प्रयोग किए पत्थर पर पत्थर रखकर करवाया।
- इस दुर्ग पर सर्वाधिक 99 बुर्ज है।
- इस दुर्ग को सोनगिरी/ स्वर्ण गिरी/ द गोल्डन फोर्ट /राजस्थान का अंडमान/ रेगिस्तान का गुलाब/ पश्चिमी सीमा का प्रहरी/ त्रिकूट गढ़/भाटी भड़ किवाड़ आदि उपनामों से भी जाना जाता है।
- इस किले में ढाई साके हुए हैं जो विश्व प्रसिद्ध है। 1299 व 1357 में पूर्ण साके तथा 1550 में अर्द्ध सका हुआ।
जोधपुर दुर्ग
- जोधपुर दुर्ग का निर्माण राव जोधा ने किया था।
- दुर्ग का निर्माण 1459 में किया गया।
- दुर्ग की आकृति मयूर जैसी है।
- यह दुर्ग चिड़ियाटूक पहाड़ी पर स्थित है।
- इस दुर्ग को मयूरध्वज, गढ़ चिंतामणि, जोधाणा, मेहरानगढ़ नामों से जाना जाता है।
- इस दुर्ग में चामुंडा माता के मंदिर का निर्माण रावजोधा ने करवाया था।
जालौर दुर्ग
- जालौर दुर्ग पश्चिमी राजस्थान का सबसे प्राचीन व सुदृढ़ दुर्ग है जिसका दरवाजा कोई भी आक्रमणकारी नहीं खोल सका।
- इस दुर्ग का निर्माण नागभट्ट प्रतिहार ने करवाया था
- इसे सोनगढ़ सोनलगढ़ जलालाबाद नामों से जाना जाता है
- यहां पर परमार कालीन कीर्ति स्तंभ स्थित है
- इस दुर्ग को सोनगिरी/ सुवर्णागिरी/ सोनल गढ़ दुर्ग कहा जाता है।
नाहरगढ़ दुर्ग (आमेर, जयपुर)
- नाहरगढ़ दुर्ग का मूल नाम सुदर्शन गढ़/ सुलक्षण दुर्ग था।
- दुर्ग का निर्माण जयसिंह ने 1734 में मराठों के विरुद्ध रक्षा के लिए करवाया था, इस दुर्ग का पूर्ण निर्माण सवाई जयसिंह ने 1867 ई.में करवाया।
- इस दुर्ग का नाम लोक देवता नाहर सिंह भोमिया के नाम पर नाहरगढ़ नाम पड़ा।
- इस दुर्ग में महाराजा सवाई माधव सिंह द्वितीय द्वारा अपने 9 पासवान रानियों के लिए एक जैसे 9 महलों का निर्माण करवाया।
जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर)
- इस दुर्ग के नीव राव बीकानेर रखी, उसे बीकानेर का किला कहते थे, जिसे तड़वा कर पुनर्निर्माण राय सिंह ने 1588 ई. में हिंदू व मुगल शैली में करवाया, तभी से जूनागढ़ का किला कहने लगे।
- जूनागढ़ दुर्ग को जमीन का जेवर कहां जाता है।
- यह रातीघाटी नामक स्थान पर बना हुआ है इसी कारण इस दुर्ग को रातीघाटी का किला भी कहते हैं।
- जूनागढ़ दुर्ग रेगिस्तान में बने सभी दुर्गों में सर्वश्रेष्ठ हैं।
आमेर का किला (जयपुर)
- इस किले का निर्माण 1150 ई. में दुल्हेराय ने मीणा शासकों से छीन कर करवाया।
- वर्तमान आमेर दुर्ग को अभेद्य स्वरूप मानसिंह प्रथम व मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा दिया गया।
- इस दुर्ग में शिला माता मंदिर भी है।
मांडलगढ़ (भीलवाड़ा)
- इस किले के लिए माडिया भील ने चानना गुर्जर को पारस पत्थर दिया और चानना गुज्जर ने इसे बेचकर दुर्ग का निर्माण करवाया।
- इस दुर्ग में बिजासना माता का मंदिर है।
तारागढ़ दुर्ग (अजमेर)
- दुर्ग का निर्माण अजय राज या अजय पाल द्वारा 1113 में करवाया गया, इसी कारण से अजयमेरू दुर्ग कहते हैं।
- मेवाड़ के उडना राजकुमार पृथ्वीराज की रानी ताराबाई के नाम पर दुर्ग का नाम तारागढ़ पड़ा।
- इस दुर्ग को राजपूताने की कुंजी कहा जाता है।
- सर्वाधिक स्थानीय आक्रमण इसी दुर्ग पर हुए।
अचलगढ़ (सिरोही)
- अचलगढ़ दुर्ग का निर्माण महाराणा कुंभा ने 1452 में रणमल के कहने पर करवाया।
- इस दुर्ग का निर्माण का मुख्य उद्देश्य गुजरात की तरफ से होने वाले आक्रमणों को रोकना था।
- इस दुर्ग में अचलेश्वर महादेव मंदिर, ओखा रानी का महल, सावन भादो झील स्थित है।
चूरू का किला (चूरू)
- दुर्ग का निर्माण ठाकुर कुशाल सिंह ने 1739 में करवाया।
- 1814 में सूरत सिंह व शिव सिंह के मध्य युद्ध, इस युद्ध में गोला-बारूद खत्म होने पर शिव सिंह ने किले से दुश्मन पर चांदी के गोले दागे। इसी कारण इसे चांदी के गोले दागने वाला किला भी कहा जाता है।
भैंस रोड गढ़ दुर्ग (चित्तौड़गढ़)
- ऐसा माना जाता है की इस दुर्ग का निर्माण व्यापारी भेंसा शाह व रोड़ा चरण( बंजारा) ने पर्वतीय लुटेरों से रक्षार्थ इस किले का निर्माण करवाया।
- यह दुर्ग चंबल और बामणी नदियों के संगम पर स्थित है।
- इस दुर्ग को राजस्थान का वेल्लोर कहा जाता है।
तारागढ़ दुर्ग (बूंदी)
- इससे तारागढ़/ तिलस्मी किला आदि नामों से जाना जाता है।
- इसका निर्माण 14 वीं शताब्दी में देवीसिंह हाडा ने करवाया |
- यह दुर्ग भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है, इस किले में गर्भ गुंजन तोप रखी गई है।
- इसके बारे मे रुर्ड याड किपलिंग ने कहां है कि यह दुर्ग मानव ने नहीं बल्कि बनाया गया लगता है।
लोहागढ़ दुर्ग (भरतपुर)
- इस दुर्ग का निर्माण 1734 में सूरजमल जाट द्वारा करवाया गया।
- इस दुर्ग को लोहागढ़ दुर्ग / मिट्टी का किला /अजयगढ़/ अभेद्य दुर्ग/ पूर्वी सीमांत का प्रहरी किला आदि नामों से जाना जाता है।
शेरगढ़ दुर्ग/ कोषवर्धन किला (बारा)
- शेरगढ़ दुर्ग परवन नदी के किनारे स्थित है, इसी कारण इसे जलदुर्ग की श्रेणी में रखा गया है।
- पूर्व में किले का नाम कोषवर्धन था, लेकिन इसका नाम शेरगढ़ “शेरशाह सूरी” द्वारा रखा गया।
शेरगढ़ दुर्ग (धौलपुर)
- इस दुर्ग दक्खिन का द्वार गढ़/धोलदेहरागड़/ धौलपुर दुर्ग आदि नामों से जाना जाता है।
- इस किले का निर्माण राजा मालदेव ने 1540 में करवाया, तो 1545 में शेरशाह सूरी ने इसका जीर्णोद्धार व पुनद्वार करवाया और इसका नाम शेरगढ़ रखा।
जयगढ़ दुर्ग
- यह दुर्ग ढूंढाड़ के कछवाहा राजवंश की पूर्व राजधानी आमेर में स्थित विशाल जयगढ़ दुर्ग है।
- वैसे तो इस दुर्ग का निर्माण जयसिंह प्रथम ने करवाया था अपने लुटे हुए खजाने को छुपाने के लिए, लेकिन एतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार कहा जाता है कि इस दुर्ग का निर्माणकर्ता कछवाहा वंश के महाराजा मानसिंह को माना गया है।
- जयगढ़ दुर्ग अन्य दुर्गों से कई दृष्टियों से विशेष है।
- यह दुर्ग अपनी कई विस्मयकारी घटनाओं के लिए प्रसिद्ध है, और जयगढ़ दुर्ग कई सदियों तक एक विचित्र रहस्यात्मकता से मण्डित रहा है, इसलिए इसे रहस्यमयी दुर्ग भी कहा जाता है।
- यह राजस्थान का एकमात्र ऐसा दुर्ग है जिस के अंदर तोप ढालने का कारखाना भी स्थित है,इस कारखाने को सिलहखाना कहते है।
- एशिया की सबसे बड़ी तोप जिसका नाम “जयबाण तोप” है, वो तोप इसी दुर्ग में स्थित हैं।
- “जयबाण तोप” का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा किया गया था।
- इस तोप की लम्बाई 20 फीट तथा मारक क्षमता 22 मील है।
- इस विशाल तोप को देखने के लिए लोग देश-विदेश से आते है।
- इतिहासकारों के अनुसार बताया गया है कि इस दुर्ग में किसी को भी जाने की अनुमति नहीं थी।
- यहाँ तक की महाराजा भी अपने विश्वासनीय दो किलेदारों में से अगर एक भी अनुपस्थित होता था तो वे इस दुर्ग में प्रवेश नहीं करते थे।
- इस दुर्ग का मुख्य द्वार हमेशा 24 घंटे बन्द ही रहते थे और उस दरवाजे के पास पहरेदार तेज धार की तलवार लेकर 24 घंटे पहरेदारी करते थे।
- इस दुर्ग में क्या है और क्या हो रहा है,किसी को भी नहीं पता था इन ही सभी कारणों की वजह से इस दुर्ग को रहस्यमयी दुर्ग कहा जाता है।
- यह भव्य और सुदृढ़ दुर्ग कैसे बना और कब बना इस के बारे में प्रमाणिक जानकारी का आभाव है।
- जनश्रुति के अनुसार बताया जाता है कि इस जयगढ़ दुर्ग का निर्माण महाराजा मानसिंह प्रथम ने अपनी राजधानी आमेर की सुरक्षा के लिए करवाया था।
नाहरगढ़ दुर्ग
- नाहरगढ़ राजस्थान के प्रसिद्ध महलों में से एक महल है।
- यह महल जयपुर में स्थित हैं नाहरगढ़ के लिए आमेर से एक घुमावदार सड़क जाती है।यह किला एक ऊँची पहाड़ी पर बना हुआ है।इस दुर्ग की आकृति मुकुट के समान दिखाई देती है।
- एक समय में यहां घने बनावली में नाहरसिंह भोमिया नामक बाबा का स्थान था।
- इस दुर्ग का निर्माण सवाई जयसिंह ने सन् 1734 करवाया था।इस दुर्ग को बनवाते समय इस दुर्ग का नाम सुदर्शनगढ़ था।
- लेकिन कहा जाता है की इस दुर्ग की नींव रखते समय भोमिया नाहरसिंह ने कार्य में रुकावट पैदा की तथा दिन में महल का निर्माण कार्य चलता था तो रात के समय भोमिया उसे नष्ट कर देता था, बाद में महाराजा जयसिंह के राजगुरु जो जयपुर के प्रसिद्ध तांत्रिक थे,उन को बुलाया इस समस्या हल करने के लिए, उनका नाम तांत्रिक रत्नाकर पुण्डरीक था, तांत्रिक पुण्डरीक जी ने भोमिया जी को प्रसन्न किया और उन्हें रहने के लिए अंबागढ़ के पास एक चौबुर्जी गढ़ी स्थान दे दिया, जहां आज भी भोमिया जी की पुजा होती है लोकदेवता के रुप में।
- बाद में जब सुदर्शनगढ़ बनकर तैयार हुआ तब इसका नाम बदलकर नाहरगढ़ रख दिया।
- नाहरगढ़ दुर्ग से जयपुर नगर का दृश्य साफ और सुंदर दिखाई देता हैं।
- राजा सवाई जयसिंह ने मराठों से जयपुर नगर की रक्षा के लिये नाहरगढ़ दुर्ग का निर्माण किया।
- बताया जाता है की उस समय किले के निर्माण पर लगभग साढ़े तीन लाख रुपये खर्च हुए थे।
- सन् 1927 ई. में जयपुर नगर बसने के सात साल बाद इस नाहरगढ़ दुर्ग का निर्माण हुआ था।
- किले के पहले दरवाजे तक पहुंचने के लिए बड़े-बड़े सर्पिलाकार मार्ग आते है। नगर और प्रचीर के ठीक नीचे एक सरोवर है जो विशाल होने के साथ साथ गहरा भी है।
- चारो ओर वनों से घिरा हुआ है। इसी क्षैत्र से दुर्ग का दुसरा दरवाजा खुलता है। इस दरवाजा के साथ वापस प्राचीर की श्रृंखला शुरू हो जाती है। और ये प्राचीर बहुत मोटी और मजबूत है । इसलिए इसको दुर्ग की दुसरी रक्षापंक्ति कहा जाता है।इस दरवाजे के अन्दर आने के बाद किला का मुख्य भाग शुरू हो जाता है।
- दुर्ग के परिसर में अनेक पहाड़ी, नाले और झरने भी आकर गिरते है। आगे चलने पर सिलहखाना और सिपाहियों की बैरकें आती है और थोड़ा आगे चलने पर वापस बड़ा सरोवर आता है। यहां से किले की ढाल शुरू हो जाता है।
- ढाल के किनारे पर सूरज प्रकाश,खुशहाल प्रकाश, जवाहर प्रकाश, ललित प्रकाश, लक्ष्मी प्रकाश, आनन्द प्रकाश, चन्द्र प्रकाश, रत्न प्रकाश, और बसन्त प्रकाश ये 9 महल बने हुए है।इन महलों की स्थापत्य कला आराइश कला थी, इन 9 महलों का निर्माण महाराजा माधोसिंह द्वितीय ने करवाया था और इन महलों के नाम महाराजा माधोसिंह द्वितीय ने अपनी 9 पासवानों के नाम पर रखे। हवा महल ,माधोसिंह की बैठक ,और शास्त्रागार भी यहीं है।
- किले की गोलाकार सृदृढ़ बुर्जों पर रियासतकाल में विशालकाय तोपें रखीं जाती थी,जो शत्रुओं के आक्रमणों को रोकने में सफल होती थी। बहुत सी तोपें आज भी वहां इधर-उधर बिखरी हुई है।
- राज्य का खजाना इस दुर्ग में जमा रहता था और बड़े-बड़े लोगों को यहां आखों पर पट्टी बांधकर लाया जाता था। इसी कारण इस दुर्ग को रहस्यमयी दुर्ग माना जाता था।
- नाहरगढ़ अपने शिल्प और सौंदर्य से परिपूर्ण भव्य महलों के लिए प्रसिद्ध हैं।
मेहरानगढ़ दुर्ग
- राजस्थान के प्रमुख दुर्गों में से मेहरानगढ़ दुर्ग भी प्रसिद्ध दुर्ग है। मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण राव जोधा ने 13 मई 1459 से बनवाना शुरू किया था।
मेहरानगढ़ दुर्ग के निर्माण की कहानी
यह दुर्ग चिड़ियाटूक पहाड़ी पर स्थित हैं। राव जोधा इस महल को पहले मसूरिया की पहाड़ी पर बनवाना चाह रहा था,लेकिन वहां पानी की कमी थी। इसलिए बाद में इस दुर्ग को बनवाने के लिए पंचोटिया पर्वत को उपयुक्त समझा। इस पंचोटिया पर्वत पर एक झरना बहता था। इसी झरने के पास एक चिड़िया नाथ नामक तपस्वी रहता था,वह उस पहाड़ी पर तपस्या करता था। इस की कुटिया इसी पहाड़ी पर थी जब तपस्वी चिड़िया नाथ (साधु) या योगी का यह बात पता चली की राजा इस पहाड़ी पर एक बड़ा और विशाल दुर्ग का निर्माण करना चाहते है।और उस तपस्वी को कुटिया हटानी पड़ेगी। लेकिन तपस्वी अपनी कुटिया हटाने और जगह छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ। राजा को यह स्थान बहुत सुंदर लगा ,उन्होंने आज तक इस से सुंदर स्थान नहीं देखा था। राजा ने इसी स्थान पर दुर्ग को बनवाने का कार्य शुरू करवा दिया। यह सब देखकर तपस्वी (साधु) बहुत दुखी हुआ। और वह क्रोधित और दुखी होकर उसने अपनी झोपड़ी उजाड़ दी और जला दी और उस धुणी के अंगारों को अपनी झोली में डालकर चला गया।और जाते-जाते चिड़िया नाथ ने राजा को शाप दिया कि “जिस पानी के कारण मुझे यह स्थान छोड़कर जाना पड़ रहा है,वह पानी तुझे भी नसीब नहीं हो।” कहा जाता है जोधपुर राज्य में पानी की हमेशा ही रही है।जब दुर्ग बनकर तैयार हुआ तो राव जोधा ने उस तपस्वी चिड़िया नाथ की कुटिया वाली जगह पर एक छोटा सा शिव मंदिर और एक कुण्ड बनवा दिया। राव जोधा को किसी तान्त्रिक ने सलह दी की यदि इस दुर्ग की नींव में किसी जीवित पुरुष को गाढ़ दिया जाये तो दुर्ग सदैंव उसके बनाने वालों के वंशजों के पास रहेगा।तो राजा ने यह बात पूरे राज्य में फैला दी कि “जो इस नींव में जीते जी गढ़ेगा उसके परिवार वालों को राजकीय संरक्षण एवं अपार धन सम्पदा दी जायेगी। तब राजिया नाम का भांभी (बलाई) इस कार्य के लिए तैयार हुआ।और उसको जिन्दा नींव में चिनवा दिया गया तथा उसके परिवार को एक भूखंड दिया गया जो बाद में राजबाग नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर राजिया को गाढ़ा गया उसके ऊपर खजाना और नक्कार खाने की इमारतें बनवाई गई। राजिया के प्रति आभार प्रदर्शन के लिये राज्य से प्रकाशित होने वाली पुस्तकों में उसका उल्लेख श्रद्धा के साथ किया जाता हैं।
मेहरानगढ़ दुर्ग की प्रमुख स्थापत्य विशेषता
इस दुर्ग के चारों तरफ लम्बी ऊँची दीवार है यह दीवार 12 से 17 फुट चौड़ी है और 15 से 20 फुट ऊँची दीवार है। इस किले की अधिकतम लम्बाई 1500 फुट और चौड़ाई 750 फुट रखी गई है। यह दुर्ग 400 फुट ऊँची पहाड़ी पर स्थित हैं इस विशाल दुर्ग से कई किलोमीटर दूर तक दिखाई देता है। बरसात के दिनों मे इस दुर्ग का नजारा और भी सुंदर और आकर्षक लगता है। कुण्डली के अनुसार इस दुर्ग का नाम चिन्तामणी था लेकिन मिहिरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध था और मिहिर का मतलब सूर्य है। मिहिरगढ़ का अपभ्रंस होकर मेहरानगढ़ हो गया। इस दुर्ग की कृति मयूर गुच्छ के जैसी लगती थी इसलिए इसे मयूरध्वज दुर्ग भी कहते है। दुर्ग के अंदर महल पोल (दरवाजे) ,मंदिर,छतरियां, तोपखाना, पुस्तकालय, शस्त्रागार बने हुए हैं।
लोहपोल:-
- इस पोल का निर्माण मालदेव के समय 1548 ई. मे शुरू हुआ और महाराजा विजयसिंह के समय 1752 ई. में बनकर तैयार हुआ।
- इस द्वार की दीवारों पर सतियों के हाथ खुदे हुए है।
जयपोल:-
- यह पोल किले के उत्तरी पूर्व में स्थित है।
- इस पोल का निर्माण राजा मानसिंह ने किया था।
- मानसिंह ने इस पोल का निर्माण करने का कारण जयपुर की सेना पर विजय पाने की याद में किया था।
फतेहपोल:-
- इस फतेहपोल का निर्माण महाराजा अजीतसिंह ने 1707 ई. में मुगलों से अपनी फतह (विजय) की याद में बनवाया गया था।
- फतहपोल से महल के अंदर तक जाने के बीच के टेढ़े -मेढ़े रास्ते में 6 द्वार आते है गोपाल पोल, मैदपोल, अमृतपोल, ध्रुव पोल, लोहा पोल, सूरजपोल नाम के द्वार है।
- अमृतपोल का निर्माण मालदेव ने करवाया था इसलिए इस द्वार को इमरती पोल भी कहते है।
- वास्तुकला के हिसाब से मेहरानगढ़ बहुत सुंदर कृति है। इस दुर्ग में बनी ऊंची और सुंदर मंजिल है।
- दुर्ग के जाली और झरोखे के महीन और आकर्षक काम को देखकर उन कारिगरों की प्रशंसा करने का मन करता है।
- श्वेत चिकनी दीवार छतों और आंगन के कारण सभी प्रासाद गर्मियों में ठण्डे रहते थे।
मेहरानगढ़ दुर्ग के महल:-
- इस दुर्ग के अंदर कई महल है जिनके नाम इस प्रकार है:-फुल महल, तखत महल, बिचला महल, खबका महल, रंग महल, जनाना महल, मोती महल, चाकेलाव महल, दौलतखाना आदि।
- मोती महल का निर्माण सूरसिंह (1595-1619) के समय में हुआ था।
- फुल महल का निर्माण अभयसिंह ने 1724 ई. में करवाया था। इस महल में खुदाई का काम देखने लायक है।
- फतह महल का निर्माण अजीत सिंह ने मुगलों को जोधपुर दुर्ग से बाहर करने की खुशी में बनवाया था।
पुस्तक प्रकाश:-
- इस पुस्तक प्रकाश का निर्माण महाराजा मानसिंह ने 1805 ई. में किया था।
- इस पुस्तकालय में कई प्रकार की भाषाओं की पुस्तकें है,जैसे:- हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, राजस्थानी भाषा की 10,000 से ज्यादा किताबे पाण्डुलिपियाँ तथा 5000 से ऊपर बहियाँ सुरक्षित है।
- जिनमें महत्वपूर्ण राजकीय आदेश, राजपरिवार के रीतिरिवाज, एतिहासिक घटनाओं का उल्लेख है।
- दुर्लभ तोपें:-
- यहां पर अनेक छोटी-बड़ी तोपे है।
- इन में से कुछ तोपों ने एतिहासिक घटनाओं को जन्म दिया है जैसे की कड़क बिजली, नुसरत, किलकिला, बिच्छू बाण, जमजमा, बगसवाहन, शम्भूबाण, गजनी खाँ, गुब्बार ,धूल घाणी नामक तोपे प्रसिद्ध है।
- किलकिला तोप अजीतसिंह ने जब बनवाई थी जब वह अहमदाबाद का सूबेदार था। यह कहा जाता हैं कि तोप अजीतसिंह ने विजयराज भण्डारी के माध्यम से अहमदाबाद के सूबेदार सरबुलन्द खाँ को परास्त कर प्राप्त की थी और यह भी कहा जाता हैं की यह तोप अभयसिंह ने सूरत से खरीदी थी।
- दुर्ग में स्थित मंदिर:-
- इस दुर्ग में चामुंडा माता, आनंद घनजी, और मुरली मनोहर के मंदिर स्थित हैं और ये मंदिर प्राचीन मंदिर है इन मंदिरों के दर्शन के लिए लाखों लोग दर्शन करने आते है।
- चामुंडा देवी प्रतिहार वंश की कुल देवी है,और ये राठौड़ वंश की कुल देवी भी है राठौड़ वंश के शासक हर मांगलिक कार्य में चामुंडा देवी आराधना करते है।
- आनंद धन जी और मुरली मनोहर मंदिरों का निर्माण महाराजा अभयसिंह ने करवाया था आनंद घन मंदिर में बिल्लोट प्रस्तर की जो 5 मुर्तियाँ है वे मुर्तियाँ महाराजा सूरसिंह को मुगल शासक अकबर से प्राप्त हुई थी।
- मुरली मनोहर की मुर्ति राजा गजसिंह ने 4 मन 22 सेर (180 kg.) चांदी की बनवाई और स्थापित की थी।
आमेर का दुर्ग
- प्राचीन समय में जयपुर राज्य की राजधानी आमेर थी , यह आमेर दुर्ग जयपुर से 11 कि.मी. दुरी पर पूर्व में स्थित है ।
- आमेर का दुर्ग माओटा झील के किनारे स्थित पहाड़ी पर बना हुआ है ।
- यहां पर पहले कई बावड़ियाँ मोजूद थी , यहां पर प्राचीन समय में कुएँ, उद्यान,और कुण्ड की भी कोई कमी नहीं थी
- यह आमेर का किला मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है ।
- आमेर का पुराना नाम अम्बावती था। इस नगर का प्राचीन नाम अम्बिकेश्वर था ।
- अम्बिकेश्वर का अर्थ होता है अम्बिका ( दुर्गा ) का पति अर्थात शिव है ।
- अम्बिकेश्वर में एक प्राचीन शिवालय भी है । यह मंदिर विश्व के अद्भूत मंदिरों में से एक है।
- मंदिर का मूल शिवलिंग धरती माता के गर्भ गृह में स्थित है जो जमीन से 15 फुट की गहराई में स्थित है ।
- यहां पर वर्षा के दिनों में यह मंदिर 6 से 7 महीने तक जलमग्न रहता है। इसीलिए अम्बिकेश्वर भगवान के दर्शन साल में 5 से 6 महीने तक ही हो पाते है।
- आमेर किले का निर्माण 17वीं शताब्दी के शुरुआत में राजा मानसिंह ने शुरू करवाया ।
- लेकिन 100 वर्ष के बाद सवाई जयसिंह ने इस महल के कार्य को पूर्ण करवाया ।
- आमेर के राजमहल के प्रवेश द्वार पर गणपति की मूर्ति स्थित है ।
- आमेर के महल में स्थित शिरोमणि का मंदिर सुंदर भवन है ।
- इस शिरोमणि मन्दिर के प्रवेश द्वार पर सुंदर तोरण और श्री गरुड़ जी की मूर्ति स्थापित है इस मंदिर का निर्माण मानसिंह प्रथम ने किया था , इस मंदिर बनाने के लिए 80 लाख रुपये उस समय खर्च हुए थे ।
- यह मंदिर राजा मानसिंह ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया तब राजा जगत सिंह मारा गया था , उसी की याद में राजा मानसिंह ने यह जगत शिरोमणि माता का मंदिर बनवाया था ।
- मंदिर में मुख्य प्रतिमा भगवान विष्णु जी की है राजा मानसिंह द्वारा लाई गई गिरधारी जी की मुर्ति भी इस मंदिर में स्थापित है ।
- महलों में दीवाने -खास और जय मंदिर कला की सीमा है ।
- मुख्य द्वार के पास जयपुर के राजाओं अर्थात कच्छवाह वंश के राजाओं की कुलदेवी ” शिलामाता ” का मन्दिर स्थित है ।
- आमेर के महल का शीशमहल बहुत ही सुंदर और आकर्षक है ।
- लेखक हैबर आमेर के महलों की सुंदरता कहता है की ” मैने क्रेमलिन में जो कुछ देखा है और अलब्रह्राण्ड के बारे में जो कुछ सुना है उससे भी बढ़कर ये महल है ।
- ” दीवान-ए-आम ” का निर्माण मिर्जा राजा जय सिंह ने किया था ।
- आमेर शक्तिशाली किले जयगढ़ जो लगभग 150 मी. की ऊंची चोटी पर स्थित है अपने राजमहल की रक्षा करता प्रतीत होता है ।
- आमेर पर्यटन की दृष्टि से अपनी सुंदरता का और महानता का आकर्षक केंद्र है ।
चित्तौड़गढ़ का दुर्ग
चित्तौड़ दुर्ग:-
- यह दुर्ग अजमेर से 152 कि.मी. दूर दक्षिण में और उदयपुर से 112 कि.मी. दूर स्थित है।
- यह दुर्ग अपने एतिहासिक इतिहास के लिए प्रसिद्ध है।
- इस चित्तौड़गढ़ के दुर्ग को राजस्थान का गौरव माना जाता है।
- इस दुर्ग को गिरीदुर्ग भी कहते है क्योंकि यह अरावली पर्वत श्रृंखला पर स्थित है।
- इस का पूर्व नाम चित्रकूट था।
- चित्तौड़गढ़ के दुर्ग का कोई निश्चित मत नहीं मिला, एक दन्त कथा के आनुसार इस दुर्ग का निर्माण द्वापर युग में पाण्डव महाबली भीम ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया था,लेकिन इस बात का ठोस सबूत नहीं मिले।
- महान इतिहासकारों के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण चित्रांगद ने करवाया था इसलिए इस नगर का नाम चित्रकूट पडा़।
- मेवाड़ के प्राचीन सिक्कों पर भी ‘चित्रकूट’ शब्द अंकित मिला।
- यह महल मौर्य राजा चित्रांगद द्वारा निर्मित है।
- इस दुर्ग के चारों तरफ 11.5 कि.मी का परकोटा बना हुआ है।
- यह महल गंभीरी एवं बेड़च नदियों के संगम पर स्थित है।
- इस किले में दो बड़े मार्ग है।
- पश्चिमी सर्पाकार प्रवेश मार्ग में सात विशाल द्वार है जिनका नाम है:-
1.पाँडव पोल।2.भैरों पोल।3.हनुमान पोल।4.गणेश पोल।5.जोड़ला पोल।6.लक्ष्मण पोल।7.राम पोल।
- भैरों पोल और हनुमान पोल के बीच पत्ता व ठाकुर जयमल की छतरियां है।
- रामपोल के अंदर घसते ही एक तरफ सिसोदिया पन्ना स्मारक आता है।
- बापा रावल जिसका दुसरा नाम कालभोज भी है उन्होने यह महल 734 ई. में मौर्य शासक मान मोरी से यह दुर्ग जीता था।
- दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 में चित्तौड़गढ़ को जीतकर अपने बेटे खिज्रखान को दे दिया और फिर इसका नाम बदलकर खिज्राबाद रख दिया।
- इस महल में इतिहास के 3 सबसे प्रसिद्ध साके हुए क्रमशः 1303 ई.,1534 ई., और फिर 1567 ई. में हुआ।
- इस महल में रानी पद्मिनी ने 1303 में और रानी कर्मावती ने 1534 ई. में अनेक विरांगनाओं के साथ जौहर किया।
- इस दुर्ग का इतिहास पुरातत्व, परम्पराएं एवं राजपुतों के महान बलिदान और वीर गोरा-बादल ,कल्ला राठौड़ और जयमल-पत्ता जैसे महान सुरवीरों का बलिदान का नाम भी इस महल से जुड़ा है।
विजयस्तम्भ
- महाराणा कुंभा ने मालवा के सुल्तान महमूद शाह तथा गुजरात के सुल्तान कुतबुद्दीन शाह के संयुक्त आक्रमण पर विजय की याद में 1458-68 के मध्य 9 मंजिल का विजयस्तम्भ का निर्माण करवाया।
- यह विजयस्तम्भ 47 वर्ग फीट आधार पर स्थित है और यह 30 फीट चौड़ा है,और 122 फीट ऊँचा है तथा इस स्तम्भ पर 157 सीढियां है।
- इस स्तम्भ के चारों ओर पौराणिक कथाएं मुर्तियों में अंकित है जो मूर्तिकला का श्रेष्ठ का श्रेष्ठ उदाहरण है।
- तीसरी और आठवीं मंजिल पर “अल्लाह” शब्द लिखा हुआ है जो अन्य धर्मों के आधार का सूचक है।
- 9वीं मंजिल पर हमीर प्रथम से महाराणा कुम्भा तक के वंश का इतिहास चित्रित है।
कीर्तिस्तंभ
- इस कीर्तिस्तम्भ का निर्माण 12वीं शताब्दी में जैन व्यापारी जिना जी द्वारा निर्मित किया गया था।
- यह कीर्तिस्तम्भ जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है।
- यह स्तम्भ 35फीट आधार व्यास पर स्थित है,और 75 फीट ऊँचा है।
- इस स्तम्भ के चारों कोनों पर ऋषभदेव की सुंदर मुर्तियाँ है।
- सतबीस देवरी मन्दिर(जैन मंदिर):-
- सतबीस देवरी यह जैन मन्दिर है यह फतह प्रकाश महल के दक्षिण पश्चिम में सड़क पर ही 11वीं शताब्दी में बना था इस मंदिर में 27 देवरिया होने के कारण यह सतबीस देवरी कहलाता है।
- इस मन्दिर के अन्दर की गुम्बजनुमा छत व खम्भों पर की गई खुदाई माउंट आबू के देलवाड़ा जैन मंदिर से मिलती जुलती है।
- यहां अन्य दर्शनीय स्थलों में महाराणा कुंभा के महल, जैन मंदिर,कीर्ति स्तंभ, मीरा मंदिर,जौहर (महासती स्थल),गौमुख कुण्ड,पद्मिनी के महल, काली माँ का मंदिर, भीलमत आदि पर्यटन स्थल है।
- इस दुर्ग में भव्य राजमहल, मन्दिर, कुण्ड दर्शनीय है।
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