राजस्थान के मुख्यमंत्री एव मंत्री परिषद
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राजस्थान के मुख्यमंत्री एंव मंत्री परिषद | राजस्थान सामान्य ज्ञान नोट्स |
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मुख्यमंत्री
- संघ की तरह राज्यों में भी संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना की गई है।
- जिस प्रकार केंद्र में प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यपालिका का प्रधान होता है, उसी प्रकार राज्य में मुख्यमंत्री वास्तविक कार्यपालिका का प्रधान होता है।
- 1935 ई. के अधिनियम के अंतर्गत, मुख्यमंत्री को भी प्रधानमंत्री की संज्ञा दी गई थी. उस समय केंद्र में प्रधानमंत्री का पद नहीं था।
- संविधान के निर्माताओं ने संघ में प्रधानमंत्री के पद का प्रावधान करते हुए राज्यों में मुख्यमंत्री के पद का प्रावधान किया है।
- कार्य, अधिकार तथा शक्ति की दृष्टि से दोनों में साम्य है. संघ शासन में जो स्थान भारत के प्रधानमंत्री का है, राज्य के शासन में वही स्थान राज्य के मुख्यमंत्री का है।
- राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग मुख्यमंत्री ही करता है, राज्यपाल तो सिर्फ एक सांविधानिक प्रधान है. मुख्यमंत्री का स्थान महत्त्वपूर्ण है।
i. नियुक्ति
- संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार राज्यपाल अपने कार्य विवेक अनुसार और मंत्री परिषद की सहायता व से करेगा जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होगा।
- संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री के रूप में राज्यपाल नियुक्त करता है।
- परन्तु, व्यवहार में राज्यपाल की वह शक्ति अत्यधिक सीमित है. चूँकि राज्यों में उत्तरदायी अथवा संसदीय स्वरूप की कार्यपालिका की व्यवस्था की गई है।
- अतः विधानमंडल में जिस दल का बहुमत होता है, राज्यपाल उसी दल के नेता को मुख्यमंत्री का पदग्रहण और मंत्रिपरिषद के निर्माण के लिए आमंत्रित करता है।
- सामान्यतः, मुख्यमंत्री विधान सभा का सदस्य होता है, परन्तु इसके अपवाद भी हैं और विधान परिषद् के सदस्य भी मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्त हुए हैं।
- यदि विधान सभा में किसी दल का स्पष्ट बहुमत न हो या किसी दल का सर्वमान्य नेता न हो, तो मुख्यमंत्री की नियुक्ति में राज्यपाल को कुछ स्वतंत्रता हो सकती है ।
ii. योग्यता
- संविधान में मंत्रियों के लिए कोई योग्यता निर्धारित नहीं की गई है।
- केवल इतना ही कहा गया है कि प्रत्येक मंत्री को अनिवार्यतः राज्य के विधानमंडल का सदस्य होना चाहिए।
- यदि नियुक्ति के समय कोई मंत्री विधानbमंडल के किसी भी सदन का सदस्य न हो, तो उसे नियुक्ति की तिथि के छह महीनों के अंतर्गत किसी सदन का सदस्य बनना पड़ेगा, अन्यथा मंत्रिपद त्यागना होगा।
- व्यवहार में वही व्यक्ति मंत्री नियुक्त होता है, जो अपने दल में प्रभावी व्यक्ति होता और मुख्यमंत्री का विश्वासपात्र होता है।
iii. शपथ
- संविधान की तीसरी अनुसूची के उपबंधो के तहत राज्य के मुख्यमंत्री व मंत्रियों को पद व गोपनीयता की शपथ राज्यपाल दिलाता है।
iv. कार्यकाल
- मंत्री परिषद का कार्यकाल सामान्यता 5 वर्ष का होता है जबकि वास्तविक रूप से अनिश्चित होता है।
- विधानसभा में जब तक बहूमत प्राप्त है तब तक मंत्री परिषद बनी रह सकती है अर्थात मंत्री परिषद का कार्यकाल सभा के कार्यकाल पर निर्भर करता है।
त्यागपत्र
- राज्य का मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्री अपना त्यागपत्र नेपाल को प्रदान करते हैं इन्हें स्वीकार करता है।
पद से हटाना
- अनुच्छेद 164(2) के तहत मंत्री परिषद सामूहिक रूप से के प्रति तथा व्यक्तिगत रूप से राज्यपाल के प्रति उत्तरदाई होती है। राज्य विधानसभा के साधारण बहुमत से पारित अविश्वास प्रस्ताव के आधार पर राज्यपाल ने अपने पद से हटा देता है।
- अनुच्छेद 164(3) तहत विभिन्न मंत्रियों के संबंधी प्रावधान है।
- अनुच्छेद 164(4) के तहत यदि कोई मंत्री सदन का सदस्य नहीं है, फिर भी वह 6 माह तक मंत्री बना रह सकता है।
- अनुच्छेद 164(5) इसमें मंत्रियों के वेतन एवं भत्ते संबंधी प्रावधान हैं।
राज्य मंत्री परिषद में तीन प्रकार के मंत्री होते हैं।
- कैबिनेट मंत्री
- राज्यमंत्री
- उपमंत्री
i. कैबिनेट मंत्री
- ये किसी एक विभाग के मंत्री होते हैं यह कैबिनेट की बैठक में भाग लेते हैं, मंत्रिमंडल में केवल कैबिनेट मंत्री ही सम्मिलित होते हैं।
ii. राज्यमंत्री
- यह कैबिनेट मंत्रियों को सहायता हेतु बनाए जाते हैं।
- यह कैबिनेट की बैठक में भाग नहीं लेते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री द्वारा आमंत्रित किए जाने पर बैठक में भाग लेते हैं।
- राज्यमंत्री दो प्रकार के होते हैं –
- स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री :- यह कैबिनेट मंत्रियों की जगह काम करते हैं।
- राज्यमंत्री :- यह उच्च स्तर के मंत्रियों को सहायता व सलाह देते हैं।
iii. उप मंत्री
- इन्हें कोई विशेष अधिकार नहीं दिए गए हैं। यह अपने उच्च मंत्रियों की सहायता हेतु बनाए जाते हैं।
संसदीय सचिव
संसदीय सचिव की नियुक्ति फ्री करता है के समान दर्जा दिया जाता है जिसका कोई विभाग निश्चित नहीं होता।
मुख्यमंत्री के कार्य
- मुख्यमंत्री का प्रथम कार्य मंत्रिपरिषद का निर्माण करना है।
- वह मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या निश्चित करता है और उसके लिए नामों की एक सूची तैयार करता है।
- इस कार्य में वह प्रायः स्वतंत्र है; परन्तु व्यवहार में उसके ऊपर भी प्रतिबंध लगे रहते हैं।
- उसे अपने दल के प्रभावशाली व्यक्तियों, राज्य के विभिन्न भागों तथा सम्प्रदायों के प्रतिनिधियों को मंत्रिपरिषद में सम्मिलित करना पड़ता है।
उच्च अधिकारियों की नियुक्ति करना
- राज्यपाल को उच्च अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार है उनकी नियुक्ति का वास्तविक निर्णय मंत्रिपरिषद ही करती है।
- जैसे :- राज्य के महाधिवक्ता, राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व अन्य आयोग के अध्यक्ष व सदस्य एवं राज्य के लोकायुक्त आदि की नियुक्ति करना।
- राज्य के शासन संबंधी नीतियों का निर्धारण करना।
- शासन से संबंधित नीतियों का क्रियान्वयन करना।
- सरकार के कार्य संचालन संबंधी नियमों का निर्धारण करना।
- विधानसभा का सत्र बुलाना एवं विसर्जन करना।
- विधान परिषद के सदस्यों का मनोनयन।
- विधानसभा में आंग्ल भारतीय प्रतिनिधि का मनोनयन।
- विधानसभा को भंग करने की सिफारिश करना।
- बजट निर्माण करना व वार्षिक वित्तीय विवरण तैयार करना।
- अध्यादेश जारी करने का निर्णय लेना।
- ध्यातव्य रहे :- विधान मंडल द्वारा बजट पारित करने की पूरी जिम्मेदारी मंत्री परिषद की होती है, यदि विधानसभा बजट अस्वीकार कर दे तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है।
- मंत्री परिषद को निश्चित अधिकार क्षेत्र में बनाए रखने हेतु निम्न प्रस्ताव विधानसभा द्वारा पेश किए जा सकते हैं-
- अविश्वास प्रस्ताव
- निंदा प्रस्ताव
- कटौती प्रस्ताव
- काम रोको प्रस्ताव
- स्थगन प्रस्ताव
- ध्यानाकर्षण प्रस्ताव
- राज्य का विधान मंडल( अनुच्छेद 168 से 213)
- संविधान के अनुच्छेद 168 के तहत देश के प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल होगा।
- राज्य विधान मंडल का गठन राज्यपाल, विधान परिषद धान सभा से मिलकर होता है।
- जिस राज्य में एक सदन है तो उसे एकसदनीय विधान मंडल कहा जाता है।
- जबकि दो सदन हो तो उसे द्विसदनीय विधानमंडल कहा जाता है।
- अनुच्छेद 169 में सांसद राज्य सरकार की सिफारिश पर किसी राज्य में विधान परिषद का गठन कर सकती है या उसे भी भंग कर सकती है।
भारत में दो प्रकार का राज्य विधानमंडल पाया जाता है।
- भारत के 24 राज्यों( 22 राज्य+ 2 केंद्र शासित प्रदेश – दिल्ली व पांडिचेरी) में एक सदनात्मक विधानमंडल है।
- भारत के 7 राज्यों में द्विसदनात्मक विधानमंडल की व्यवस्था की गई है।
विधान परिषद
- अनुच्छेद 169 के तहत यदि राज्य विधानसभा कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित मत देने वाले सदस्यों की संख्या के दो तिहाई बहुमत द्वारा विधान परिषद के संकल्प को पारित करती हैं। तो संघीय संसद साधारण बहुमत द्वारा राज्य विधान परिषद के सर्जन या समाप्ति का अधिकार संसद को प्राप्त है
- विधान परिषद को राज्यों में उच्च सदन/ द्वितीय सदन तथा स्थाई सदन कहा जाता है।
विधान परिषद का गठन
- अनुच्छेद 171 के तहत परिषद के सदस्यों का निर्वाचन निम्न प्रकार से किया जाता है।
- राजस्थान में कुल सदस्य संख्या का –
- ⅓ भाग स्थानिया नगर निकायों द्वारा( 22 सदस्य)
- ⅓ भाग विधानसभा सदस्यों द्वारा( 22 सदस्य)
- 1/12 भाग पंजीकृत स्नातकोत्तर द्वारा( 5 सदस्य)
- 1/12 भाग शिक्षकों द्वारा निर्वाचित (6 सदस्य)
- 1/6 भाग द्वारा मनोनीत किए जाते हैं( 11 सदस्य, जो कि साहित्य, कला, विज्ञान, समाज सेवा एवं सहकारिता आंदोलन से संबंधित होते हैं)।
वर्तमान समय में 7 राज्यों में विधान परिषद है
- जम्मू कश्मीर 36 सीटें
- बिहार 75 सीटें
- कर्नाटक। 75 सीटें
- महाराष्ट्र। 78 सीटें
- सीमांध्र 50 सीटें
- तेलंगाना 40 सीटें
- उत्तर प्रदेश 99 सीटें
विधान परिषद के सदस्यों की योग्यताएं
अनुच्छेद173 के तहत विधान परिषद के सदस्यों की योग्यता राज्यसभा के सदस्यों के समान होती है।
- 30 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
- संसद सूची के अनुसार उसका मतदाता सूची में नाम हो।
कार्यकाल
- विधान परिषद एक स्थाई सदन है, जो कभी भी बंद नहीं होती है।
- परंतु इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है। इसके ⅓
- सदस्य प्रति 2 वर्ष बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं और उनके स्थान पर नए सदस्यों का निर्वाचन किया जाता है।
शपथ
- इसके सदस्यों को शपथ राज्यपाल के द्वारा दिलाई जाती है।
त्यागपत्र
- सदस्य अपना त्यागपत्र विधान परिषद के सभापति को तथा अनुपस्थिति में उपसभापति को देते हैं।
पदाधिकारी
- इसके पदाधिकारियों में एक सभापति व एक उपसभापति मुख्य पदाधिकारी होते हैं।
- इनका निर्वाचन विधान परिषद के सदस्य अपने में से बहुमत के आधार पर करते हैं।
- इन्हें सभापति व उपसभापति के रूप में कोई शपथ नहीं दिलाई जाती है।
- सभापति व उपसभापति का कार्यकाल सामान्यतया 5 वर्ष होता है।
- इन्हें समय से पूर्व हटाने के लिए 14 दिन पूर्व सूचना देकर विधान परिषद के सदस्य कभी भी अपने बहुमत से पारित संकल्प पत्र द्वारा पद से हटा सकते हैं।
विधानसभा
- विधानसभा राज्य विधान मंडल का प्रथम सदन/ निम्न सदन/ जनता का सदन /अस्थाई सदन / लोकप्रिय सदन है।
विधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन
- राज्य की विधानसभा में कितने सदस्य होंगे यह उस राज्य की जनसंख्या पर निर्भर करता है ।
- अनुच्छेद 170 के तहत प्रत्येक राज्य की विधान सभा का गठन अधिकतम 500 सदस्यों न्यूनतम 60 सदस्यों से होता है।
- वर्तमान में राजस्थान की 200 विधानसभा सीटें हैं।
विधानसभा का कार्यकाल
- अनुच्छेद 172 के तहत विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष होता है।
- लेकिन समय से पूर्व अनुच्छेद 174 के तहत राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह से समय से पहले भंग कर सकता है।
विधानसभा सदस्यों की योग्यता
- इनके सदस्यों की योग्यता लोकसभा के सदस्यों के समान होती है।
शपथ
- विधान सभा के सदस्यों को शपथ राज्यपाल दिलाता है तथा अपना त्यागपत्र भी राज्यपाल को देते हैं।
पदाधिकारी
- विधानसभा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष इसके मुख्य पदाधिकारी होते हैं।
- इनका निर्वाचन अनुच्छेद 178 के तहत विधानसभा सदस्य अपने में से बहुमत के आधार पर करते हैं।
- विधानसभा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को शपथ नहीं दिलाई जाती।
- यह अपना त्यागपत्र एक दूसरे को आपस में सोपंते हैं।
पदाधिकारी का कार्यकाल
- विधानसभा अध्यक्ष का कार्यकाल समानता 5 वर्ष अथवा पद ग्रहण तिथि से आगामी विधान सभा की पहली बैठक से कुछ समय पूर्व तक रहता है।
अधिवेशन
- विधानसभा के कम से कम 1 वर्ष में दो बार अधिवेशन होना अनिवार्य है। लेकिन उसमें 6 माह से अधिक अंतर नहीं होना चाहिए
- विधानसभा अध्यक्ष लोकसभा अध्यक्ष के समान कार्य करता है।
राजस्थान विधानसभा
- राजस्थान में एक सदनीय विधान मंडल( विधानसभा) पाया जाता है।
- वर्तमान राजस्थान में 200 विधानसभा सीटें हैं।
- प्रथम विधानसभा के लिए 4 जनवरी से 24 जनवरी 1952 तक आम चुनाव हुए।
- प्रथम विधानसभा का गठन 29 फरवरी 1952 को हुआ, राजस्थान विधान सभा की प्रथम बैठक 29 मार्च 1952 को राजस्थान की राजधानी जयपुर के सवाई मानसिंह टाउन हॉल में हुई।
राजस्थान विधानसभा में सदस्यों की संख्या :-
- पहली विधानसभा 1952 : 160 सीटें
- दूसरी विधानसभा 1957 : 176 सीटें
- चौथी विधानसभा 1967 : 184 सीटें
- छठी विधानसभा 1977 : 200 सीटे
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