राजस्थान के लोकगीत नोट्स
वर्तमान में सही मंच देने का श्रेय चोमू( जयपुर) के निवासी इकतारा राजस्थानी को जाता है। महात्मा गांधी ने कहा है कि लोकगीत जनता की भाषा है और संस्कृति की पहरेदार है। राजस्थान का संगीतज्ञ हरि सिंह पेशे की किवदंती पुरुष हुए थे उसने एक राग में पत्थर पिघला दिया।
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राजस्थान के लोकगीत | राजस्थान सामान्य ज्ञान नोट्स |
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मूमल
- यह एक जैसलमेर का शृंगारिक लोकगीत है।
- इसमें राजकुमारी(लोद्रवा) मूमल के सौंदर्य का वर्णन है। जैसलमेर में गाया जाता है।
- जिसके बोल हैं “म्हारी बरसाले री मूमल, हालेनी ऐ आलिजे रै देखा” ।
- यह गीत एक ऐतिहासिक प्रेमाख्यान है, जिसका संबंध(लोद्रवा – जैसलमेर) राजकुमारी व महेंद्र ( वर्तमान पाकिस्तान के राजकोट) राजकुमार से हैं।
ढोलामारू
- यह सिरोही क्षेत्र का लोकगीत हैं।
- इसे ढाडी जाति के लोग अधिक कहते हैं। ढोला मारू की प्रेम कथा का वर्णन है।
जच्चा गीत/ होलर गीत
- यह पुत्र जन्म पर गाया जाता है।
फलसडा
- यह विवाह के अवसर पर अतिथियों के स्वागत के लिए गाए जाते हैं।
घूमर
- यह गीत गणगौर, तीज व विवाह के अवसर पर मुख्य रूप से गाया जाता है
- जिसके बोल “म्हारी घूमर छे नखराली ऐ माय, घूमर रमवा मैं जास्या”…..
- राजस्थान के प्रसिद्ध लोक नृत्य घूमर के साथ गाया जाने वाला गीत है।
चिरमी
- यह लोकगीत पश्चिमी राजस्थान में प्रसिद्ध है।
- इन गीतों के माध्यम से एक ग्राम वधू चिरमी के पौधे को संबोधित कर अपने भाई व पिता की प्रतीक्षा के समय की मन की व्यथा कहती है।
गोरबंद
- राजस्थान के मरुस्थलीय व शेखावाटी क्षेत्र में लोकप्रिय गोरबंद गीत प्रचलित है। जिसके बोल हैं म्हारो गोरबंद नखरालो…
- गोरबंद का अर्थ उंठ के गले का हार होता है।
दुलजी
- राजस्थान के गांव में होने वाले बाल विवाह के विरोध में गया जाने वाला गीत दूलजी कहलाता है।
जला गीत
- वधू पक्ष से स्त्रियों वर की बारात के डेरे पर वर को देखने जाती है, तब महिलाओं द्वारा जला गीत गाया जाता है।
- जिसके बोल है “म्हे तो थारा डेरा निरखण आई ओ, म्हारी जोड़ी रा जला”
पीपली
- यह रेगिस्तानी इलाकों विशेषता शेखावाटी तथा मारवाड़ के कुछ भागों में स्त्रियों द्वारा वर्षा ऋतु में गाया जाने वाला विरह लोकगीत।
- यह गीत पिया से नाराज होकर पीहर में बैठी विरहनि जब भोजाई के ताने सुनकर दुखी हो जाती है तब गीत गाती है।
सीठने
- यह गाली गीत कहलाते हैं, जो विवाह के अवसर पर ब्याण ब्याही से मजाक करते हुए गाती है।
- हंसी ठिठोली से भरे इन गाली गीतों से तन मन सरोबार हो उठता है।
मोरिया
- इस लोकगीत में ऐसी बालिका का वर्णन किया जाता है, जिसका रिश्ता तो तय हो चुका है लेकिन विवाह में देरी है।
हिंडो/ हिंडोलिया
- सावन महीने में राजस्थानी महिलाएं झूला झूलते समय यह गीत गाती है।
कागा
- इसमें विरहनी महिला कुए को संबोधित करके अपने प्रियतम के आने का शगुन मनाती है और कहती है “उड़ उड़ रे म्हारा काला रे कागला, म्हारा पिवजी घर आवै।”
गणगौर का गीत
- गणगौर के त्योहार पर स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला प्रसिद्ध लोकगीत।
बधावा गीत
- शुभ कार्य पर गाया जाने वाला लोकगीत।
- इन लोक गीतों के जरिए बधाई दी जाती है।
जीरो
- इस गीत पत्नी अपने पति से जिरा नहीं बोने की प्रार्थना करती हुई कहती है “जीरो जीव री बैरी रै मत बाओ म्हारा प्रण्या जीरो।”
कलाली
- यह वीर रस प्रधान गीत है।
- कलाली एक शराब बेचने वाली जाती है।
- राजस्थान में कुछ दिन पहले एक गीत जो बहुत प्रसिद्ध हुआ “ढक्कन खोल कलाली म्हारी बोतल को” जो इससे संबंधित है
ओलु
- किसी की याद( विदाई) में गाया जाने वाला गीत संगीत अोलू कहलाता है। जैसे बेटी की विदाई पर उसके घर की स्त्रियां से गति है।
पणिहारी
- पानी भरने जाने वाली स्त्री को पणिहारी कहते हैं।
- यह राजस्थान का प्रसिद्ध लोक गीत है, जिसे कुए से पानी भरकर घर आते समय औरतें गाती है।
इंडोनी
- यह कालबेलिया जाति का लोकगीत है, जिसे यह भीख मांगते समय गाते हैं।
- ध्यान रहे इडोनी का शाब्दिक अर्थ – ईंडी होता है। इस गीत के जरिए महिला अपनी इडोनी की प्रशंसा करती है।
सुपना
- वीरहनी के स्वपन से संबंधित गीत।
कुरजा
- पश्चिमी राजस्थान में विरहनि द्वारा अपने प्रियतम को संदेश भिजवाने हेतु कुरजा पक्षी को माध्यम बनाकर यह गीत गाया जाता है।
- कुरजा पक्षी संदेशवाहक पक्षी कहलाता है, जो खीचन गांव जोधपुर में पाया जाता है।
कांगसियो
- कांगसिया का शाब्दिक अर्थ – कंघा होता है जो स्त्रियों के बाल संवारने का प्रमुख साधन होता है।
- इसलिए इस को आधार मानकर यह गीत गाया जाता है |
“म्हारो छैल भंवर रो कांगसियो पणिहारीया ले गई रे”
पपैया
- यह गीत दांपत्य प्रेम के आदर्श का परिचायक है, जिसमें प्रेयसी अपने प्रियतम को उपवन में आकर मिलने की प्रार्थना करती है।
तेजा गीत
- किसान खेती शुरू करते समय गुजराती गीत गाते हैं, इन गीतों को “तेजाटेर” भी कहते हैं।
लावणी
- लावणी का मतलब बुलाने से है।
- नायक के द्वारा शुक्ला ने किया नायिका को बुलाने के अर्थ में लावणी गायी जाती है।
- सिंगार व भक्ति संबंधी लावणीया प्रसिद्ध है। मोरध्वज, भृतहरी आदि प्रमुख लावणीया है।
सुवटियो
- भील जनजाति में जब पति प्रदेश चला जाता है, तब उसके वियोग में उसकी पत्नी अपनी ननद को उलहाना देती हुई गाती है। इस के बोल हैं। “उडियो रे उडियो, डोडो डोडो जाए रे म्हारो सुवटिया”
काजलियो
- भारतीय संस्कृति में सोलह सिंगारो में से एक काजल है।
- काजलियो एक शृंगारिक गीत है। जब दूल्हे को सजाया जाता है तब उसकी भौजाई द्वारा उसकी आंखों में काजल डाला जाता है और उस समय यह गीत गाया जाता है।
पंछीड़ा
- हाडोती व ढूंढाड क्षेत्र में मेलों के अवसर पर अलगोजा ढोलक व मंजीरे के साथ गाया जाने वाला लोकगीत।
लांगुरिया
- करौली क्षेत्र में केला देवी के आने वाले भक्त लंगुरिया कहलाते हैं।
- उनके द्वारा यादव वंश की कुलदेवी केला देवी की आराधना में गीत गाए जाते हैं।
हरजस
- राजस्थानी महिलाएं द्वारा गाए जाने वाले वे शगुन भक्ति लोकगीत, जिनमें मुख्यता राम और कृष्ण दोनों की लीलाओं का वर्णन होता है।
कामण
- राजस्थान में ससुराल में वर को जादू टोने से बचाने हेतु गाए जाने वाले गीत कामण कहलाते हैं।
बिछुड़ो
- हाडोती क्षेत्र में प्रचलित गीत, जिसमें एक ऐसी औरत की व्यथा है, जिसे बिच्छू ने डस लिया है और मरने वाली है और मरते वक्त अपने पति से दूसरे विवाह करने के लिए कहती है।
- जिसके बोल हैं मै तो मरी होती राज,खा ग्यो बैरी बिछुड़ो।
हिचकी
- यह लोकगीत अलवर में भरतपुर में ज्यादा प्रसिद्ध है।
- इसमें वीरहनी स्त्री को जबकि आती है, तो वह ऐसा सोच कर कि मुझे पति याद कर रहा है, गीत गाती है।
घुडला
- मारवाड़ क्षेत्र में होली के बाद घुडला त्योहार के अवसर पर कन्याओं द्वारा गया जाने वाला लोकगीत है जिसके बोल है – घुडला घुमेला जी घुमेला, घुड़ले बांध्यो सुत
मायरा
- भात भरते समय गाया जाने वाला गीत ।
मोरिया
- इस लोकगीत में ऐसी लड़की की व्यथा है, जिसका विवाह संबंध निश्चित हो गया है किन्तु विवाह होने में देरी है।
औल्यू
- ओल्यू का मतलब ‘याद आना’ है।
- दाम्पत्य प्रेम से परिपूर्ण विलापयुक्त लयबद्ध गीत जिसमें पति के लिए भंवरजी,
- कँवरजी का तथा पत्नी के लिए मरवण व गौरी का प्रयोग किया गया है।
घूमर
- गणगौर अथवा तीज त्यौहारों के अवसर पर स्त्रियों द्वारा घूमर नृत्य के साथ गाया जाने वाला गीत है, जिसके माध्यम से नायिका अपने प्रियतम से श्रृंगारिक साधनों की मांग करती है।
गोरबंध
- गोरबंध, ऊंट के गले का आभूषण है। मारवाड़ तथा शेखावटी क्षेत्र में इस आभूषण पर गीत गोरबंध नखरालो गीत गाया जाता है। इस गीत से ऊँट के शृंगार का वर्णन मिलता है।
कुरजां
- यह लोकप्रिय गीत में कुरजां पक्षी को संबोधित करते हुए विरहणियों द्वारा अपने प्रियतम की याद में गाया जाता है, जिसमें नायिका अपने परदेश स्थित पति के लिए कुरजां को सन्देश देने का कहती है।
झोरावा
- जैसलमेर क्षेत्र का लोकप्रिय गीत जो पत्नी अपने पति के वियोग में गाती है।
कागा
- कौवे का घर की छत पर आना मेहमान आने का शगुन माना जाता है। कौवे को संबोधित करके प्रेयसी अपने प्रिय के आने का शगुन मानती है और कौवे को लालच देकर उड़ने की कहती है।
कांगसियों
- यह राजस्थान का एक लोकप्रिय श्रृंगारिक गीत है।
सुवटिया
- उत्तरी मेवाड़ में भील जाति की स्त्रियां पति-वियोग में तोते (सूए) को संबोधित करते हुए यह गीत गाती है।
जीरो –
- इस लोकप्रिय गीत में स्त्री अपने पति से जीरा न बोने का अनुनय-विनय करती है।
लांगुरिया
- करौली की कैला देवी की आराधना में गाये जाने वाले भक्तिगीत लांगुरिया कहलाते हैं।
मूमल
- यह जैसलमेर क्षेत्र का लोकप्रिय गीत है, जिसमें लोद्रवा की राजकुमारी मूमल के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है। यह एक श्रृंगारिक गीत है।
पावणा
- विवाह के पश्चात् दामाद के ससुराल जाने पर भोजन के समय अथवा भोजन के उपरान्त स्त्रियों द्वारा गया जाने वाला गीत है।
सिठणें
- यह विवाह के उपलक्ष्य में गाया जाने वाला गाली गीत है जो विवाह के समय स्त्रियां हंसी-मजाक के उद्देश्य से समधी और उसके अन्य सम्बन्धियों को संबोधित करते हुए गाती है।
हिचकी
- मेवात क्षेत्र अथवा अलवर क्षेत्र का लोकप्रिय गीत दाम्पत्य प्रेम से परिपूर्ण जिसमें प्रियतम की याद को दर्शाया जाता है।
कामण
- कामण का अर्थ है – जादू-टोना। पति को अन्य स्त्री के जादू-टोने से बचाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला गीत है।
पीपली
- मारवाड़ बीकानेर तथा शेखावटी क्षेत्र में वर्षा ऋतु के समय स्त्रियों द्वारा गया जाने वाला गीत है।
सेंजा
- यह एक विवाह गीत है, जो अच्छे वर की कामना हेतु महिलाओं द्वारा गया जाता है।
जच्चा
- यह बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जाने वाला गीत है, जिसे होलरगीत भी कहते हैं।
चिरमी
- चिरमी एक पौधा है जिसके बीज आभूषण तौलने में प्रयुक्त होते थे। चिरमी के पौधे को सम्बोधित कर नायिका द्वारा आल्हादित भाव से ससुराल में आभूषणों व चुनरी का वर्णन करते हुए स्वयं को चिरमी मान कर पिता की लाडली बताती है। इसमें पीहर की याद की भी झलक है।
केसरिया बालम
- राजस्थान के इस अत्यंत लोकप्रिय गीत में नायिका विरह से युक्त होकर विदेश गए हुए अपने पति की याद करती है तथा देश में आने की अनुनय करती है।
हिण्डोल्या
- राजस्थानी स्त्रियां श्रावण मास में झूला-झूलते हुए यह गीत गाती है।
हमसीढो
- भील स्त्री तथा पुरूष दोनों द्वारा सम्मिलित रूप से मांगलिक अवसरों पर गाया जाने वाला गीत है।
ढोला-मारू
- सिरोही क्षेत्र का यह लोकप्रिय गीत ढोला-मारू के प्रेम-प्रसंग पर आधारित है तथा इसे ढाढ़ी लोग गाते हैं।
रसिया
- रसिया होली के अवसर पर ब्रज, भरतपुर व धौलपुर क्षेत्रों के अलावा नाथद्वारा के श्रीनाथजी के मंदिर में गए जाने वाले गीत है जिनमें अधिकतर कृष्ण भक्ति पर आधारित होते हैं।
इडुणी
- इडुणी पानी भरने के लिए मटके के नीचे व सर के ऊपर रखे जाने वाली सज्जा युक्त वलयाकार वस्तु को कहते हैं। यह गीत पानी भरने जाते समय स्त्रियों द्वारा गाया जाता है। इसमें इडुणी के खो जाने का जिक्र होता है।
पणिहारी
यह पनघट से जुड़े लोक गीतों में सर्वाधिक प्रसिद्ध है। पणिहारी गीत में राजस्थानी स्त्री का पतिव्रता धर्म पर अटल रहना बताया गया है। इसमें पतिव्रत धर्म पर अटल पणिहारिन व पथिक के संवाद को गीत रूप में गाया जाता है। जैसे – कुण रे खुदाया कुआँ, बावड़ी ए पणिहारी जी रे लो।
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